सोशल मीडिया में भड़काऊ पोस्ट से बढ़ रहे भावनात्मक संक्रमण, बिखर रहा समाज’

side effect of social media, what is loses of social media

सोशल मीडिया में भड़काऊ पोस्ट से बढ़ रहे भावनात्मक संक्रमण, बिखर रहा समाज’
सोशल मीडिया के साइड इफेक्ट
सोशल मीडिया बड़ों के साथ-साथ बच्चों को भी आक्रामक बना रहा है। कानपुर में उपद्रव के वीडियो वायरल होते ही हिंसा का फैसला इसका ताजा नमूना है। सोशल मीडिया में भड़काऊ पोस्ट से बढ़ रहे भावनात्मक संक्रमण से पारिवारिक एवं सामाजिक तानाबाना भी कमजोर हो रहा है। यह जानकारी गुरुवार को कानपुर जीएसवीएम मेडिकल कालेज में शुरू हुए सिपकॉन-2017 की शुरुआत में दी गई। मानसिक रोग विशेषज्ञों ने रात 11 बजे से सुबह तक घरेलू इंटरनेट (ऑफिस, कंपनियों आदि के नहीं) बंद करने की भी मांग उठाई।     

इंडियन साइक्रेट्री सोसाइटी के सेंट्रल जोन की तरफ से जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज आडीटोरियम में सिपकॉन एंड सीएमई - 2017 का शुभारंभ हुआ। तीन दिन तक चलने वाले कार्यक्रम की शुरुआत में प्रोफेसर प्रभात सिथोले ने बताया कि एग्रेसिव डिसआर्डर (आक्रामक विकार) दो तरह का होता है, नकारात्मक और सकारात्मक। सकारात्मक एग्रेसिव डिसआर्डर का उदाहरण भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली हैं जिनकी आक्रामकता सामान्य है जो क्रिकेट मैदान में दिखाई देती है।  ऐसी सकारात्मक आक्रामकता ठीक है, पर नकारात्मक आक्रामकता (पैथालॉजिकल एग्रेसिव) घातक है।  कई बार बच्चे सही लक्ष्य न मिलने से नकारात्मक आक्रामकता का शिकार होकर दूसरों को गालियां देने, पीटने, चोट पहुंचाने, माता-पिता के कहने के विपरीत व्यवहार करने लगते हैं।
माता-पिता में झगड़ों, पिता के नशेड़ी, जुआड़ी होने, मानसिक या शारीरिक बीमारी का बच्चों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। प्रकृति से दूरी, मूलभूत सुविधाओं में कमी, खराब माहौल से बच्चे अपराध की तरफ जा सकते हैं। इसे शुरुआत में ही नियंत्रित करना जरूरी है। वरिष्ठ मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. उन्नति कुमार के अनुसार सोशल मीडिया की वजह से स्वभाव में तेजी से बदलाव आ रहा है। व्हाट्सएप पर जो भी आ रहा है, उसकी सच्चाई जाने बगैर वैसा ही करने की सोच का नकारात्मक असर हो रहा है। बैक्टीरिया, वायरस से भी ज्यादा तेजी से भावनाओं का संक्रमण बढ़ रहा है। ऐसे में अभिभावकों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। वे बच्चों से खूब बात करें, उनके व्यवहार पर नजर रखें। चीन की तरह यहां भी रात 11 बजे से सुबह 6 बजे तक घरेलू इंटरनेट प्रतिबंधित होना चाहिए। हिमालयन इंस्टीट्यूट, देहरादून के डॉ. रवि गुप्ता ने बताया कि तनाव, मानसिक रोगों की वजह से अनिंद्रा हो सकती है। दो हफ्ते तक नींद न आना, खराब ख्याल आना, भूख न लगे, व्यवहार में नकारत्मकता आना आदि मानसिक रोग के लक्षण हो सकते हैं। कार्यक्रम में मेडिकल कालेज के मानसिक रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. धनंजय चौधरी, डॉ. रवि कुमार आदि शामिल रहे।
15 करोड़ मानसिक रोगियों के लिए मात्र 6000 डॉक्टर
पूना से आए इंडियन साइकेट्री सोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. बिग्रेडियर एमएसवीके राजू के अनुसार देश में करीब 15 करोड़ लोग मानसिक रोगी हैं। इसके इलाज के लिए मात्र 6000 मानसिक रोग विशेषज्ञ हैं। यूपी में इनकी संख्या करीब 250 ही है। देशभर में हर साल करीब साढ़े चार सौ मानसिक रोग चिकित्सक बन पाते हैं। इस वजह से करीब 75 प्रतिशत मरीजों को इलाज ही नहीं मिल पाता। जबकि हर स्कूल में मनोरोग विशेषज्ञ होना चाहिए। केंद्र सरकार और एमसीआई के माध्यम से एमबीबीएस के पाठ्यक्रम में मानसिक रोग को अलग विषय के रूप में जोड़ने और पीजी में सीटें बढ़वाने की कोशिश की जा रही है।
सीवीटी से मानसिक रोगों का इलाज हुआ आसान 
केजीएमयू, लखनऊ के मानसिक रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. पीके दलाल नेे बताया कि काग्नेटिव विहेवियर थिरैपी (सीवीटी) से मानसिक रोगियों का इलाज आसान हो गया है। डॉक्टरों को अवसाद, फोबिया, घबराहट आदि मानसिक रोगियों को उनकी दिक्कतों के हिसाब से दोनों विधियों में तालमेल बैठाते हुए इलाज करना चाहिए। इसी कालेज के डॉ. आदर्श त्रिपाठी और डॉ. सुजीत कुमार ने बताया कि हमारी सोच और व्यवहार एक - दूसरे से जुड़े हैं। एक की गड़बड़ी से दूसरा भी गड़बड़ होने लगता है। सीवीटी के माध्यम से सोच और व्यवहार बदला जा सकता है। मरीजों को दो-तीन महीने तक हफ्ते में दो-दो बार बुलाकर जीने के तरीके सिखाए जाते हैं। जिससे वे स्वयं का आंकलन करने और दिक्कतों का सामना करने में सक्षम हो जाते हैं।
हम से मैं होने से बढ़ रहे मानसिक रोगी
इंडियन साइक्रेट्री सोसाइटी के सेंट्रल जोन के अध्यक्ष व एमजीएम मेडिकल कालेज, इंदौर के प्रोफेसर डॉ. रामगुलाम राजदान के अनुसार हम से मैं होने की वजह से मानसिक रोगी बढ़ रहे हैं। इसकी वजह परिवारों का छोटा होना, दादा-दादी का साथ न होना, माता-पिता की व्यस्तता, मोबाइल की वजह से आपस में बातचीत घटना आदि भी हैं।
अवसाद के लक्षण
एकाग्रता में कमी, नींद न आना, भूख न लगना, पहले की तरह खुशी न होना, जीवन को ठीक से न जी पाना, ऐसा विचार आना कि जीवन में जो भी हो रहा है गलत है, आत्महत्या का विचार आना।
मानसिक रोगों से बचाव के उपाय
अभिभावक रखें बच्चों पर नजर
-माता-पिता औप परिजनों से जुड़ाव बनाएं रखें
-घर का माहौल ठीक रखें.
-बच्चों को मोबाइल गेम के बजाय रोज एक-दो घंटे खेलने देना, जिससे वे जीतना, हारना और चीजों को साझा करना सीखें
-बच्चों को इंटरनेट, कंप्यूटर का जरूरत भर ही उपयोग करने दें
-बच्चों के बर्ताव पर नजर रखें
-मानसिक रोग हो तो जल्द से जल्द इलाज कराएं 
शाम को इस कार्यक्रम के उद्घाटन के बाद आयोजन स्थल में बेले डॉस हुआ, जिसमें डॉक्टरों ने भी ठुमके लगाए।
सौजन्य : अमरउजाला 

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