इस पोस्ट में बालेंदु शर्मा दधिची जिनका ब्लॉग http://balendu.com/ है से लिया गया है |
इंटरनेट अपनाने में अपनी प्राइवेसी खोना ज़रूरी है ? - Google privacy Tips in Hindi
Google privacy Tips in hindi
मित्रों !
एक बहुत ही जाने माने आईटी प्रोफेशनल और हिंदी लेखक है - बालेंदु शर्मा दधिची। इनके ब्लॉग http://balendu.com/ पे जो भी जानकारी या विषय होता है वो अपने आप में बहुत ही उम्दा किस्म का होता है। आज इनकी ब्लॉग पे मैंने एक लेख पढा - इंटरनेट अपनाने के लिए प्राइवेसी खोना ज़रूरी क्यों है ? मुझे ये लेख बहुत ही अच्छा लगा। ये लेख मैं आप लोगो से शेयर कर रहा हु अगर अच्छा लगे तो कमेंट जरूर कीजियेगा।
इंटरनेट अपनाने के लिए प्राइवेसी खोना ज़रूरी क्यों है ?
Google की नई, एकीकृत पॉलिसी कोई तकनीकी चीज़ नहीं है, यह आप−हम जैसे इंटरनेट उपयोक्ताओं को सीधे प्रभावित करेगी। इसके तहत Google की तमाम सर्विसेज में आपका दिया ब्यौरा, आपकी इंटरनेट सर्च, आपके देखे मसालेदार वीडियोज, पोर्नोग्राफिक तसवीरें, आपकी ईमेल में आने वाले संदेश, Google Maps में ढूंढे गए ठिकाने, कैलेंडर में दर्ज की गई तारीखें, Google Plus में हुई बातें और बने दोस्तों का ब्यौरा इकट्ठा करके आपके निजी डेटा का भंडार बना लिया जाएगा। इसके आधार पर आपके बारे में ज्यादातर बातें Google को पता चल जाएंगी, जैसे आपका काम, जगह, लिंग, उम्र, पसंद− नापसंद, वैवाहिक स्थित, कामिकाज, इंडस्ट्री, शौक, आर्थिक स्थित, अच्छिइयाँ, कमजोरियाँ, बीमारियाँ, आपका शिड्यूल, यात्रा की तारीखें, नेट पर खोजी गई तसवीरें, देखे गए वीडियो, देखी गई वेबसाइटें और न जाने क्या−क्या। पहले भी Google आपकी जानकारियों पर नजर रखता था, उन्हें सहेजता भी था लेकिन फिर भी अलग−अलग सर्विस में वे अलग−अलग रहती थीं। अब वे सब मिलने जा रही हैं। यानी आँख, नाक, कान, मुँह, सिर, धड़, टांगें.. सब अलग−अलग जरियों से लाकर एक साथ मिलाए जा रहे हैं। इस तरह बन जाएगी आपकी पूरी तसवीर। आप चाहें या न चाहें। जानकारियों का यह भंडार दूसरों के भी हवाले किया जा सकता है, Google से बाहर की कंपनियों, संगठनों, लोगों और विज्ञापनदाताओं को भी जो किसी न किसी रूप में Google के सहयोगी या एफीलिएट हैं। नई पॉलिसी को लेकर पश्चिम और पूरब के तकनीकी विशेषज्ञों, प्राइवेसी के हिमायतियों, कानून के दिग्गजों और राजनीति के पंडितों के बीच हंगामा सा बरपा है। आम यूज़र्स की तो बात ही छोड़ दीजिए। आपकी प्राइवेट जानकारियां अब 'प्राइवेट' नहीं रह जाएंगी, बल्कि Google के डेटाबेस का हिस्सा बन जाएंगी।
सवाल उठे हैं कि Google इन सूचनाओं का क्या करेगा? उन्हें कब और किसे मुहैया करा देगा? उनकी कितनी सुरक्षा कर पाएगा? उनके आधार पर आपसे कब और कैसा फायदा उठाएगा? सबसे बड़ा सवाल जो उठा है वह यह कि तब आपकी प्राइवेसी का क्या बचा रह जाएगा?आपको भी फर्क पड़ेगा जिन लोगों का कामकाज, दायरा और इंटरनेट सर्फिंग बहुत सीमित है, उन्हें शायद बहुत फर्क़ न पड़े। अगर आप एक आदर्श इंसान हैं, जिसने कभी कोई गलत काम नहीं किया और जिसका सब कुछ ठीकठाक है, उसे भी अपनी सूचनाओं के लीक हो जाने की शायद ज्यादा चिंता न हो। लेकिन दुनिया में सब लोग आदर्श नहीं हैं। सबके पास छिपाने को कुछ न कुछ है।जो दिन का अच्छा खासा हिस्सा इंटरनेट पर खर्च करते हैं, सोशियल नेटवर्किंग से लेकर ईमेल तक जिनके लिए सिटी ट्रांसपोर्ट से कहीं ज्यादा अहम हैं, जिनके कारोबार में इंटरनेट सर्च की भूमिका है या जो Google के एंड्रोइड अएपरेटिंग सिस्टम से युक्त स्मार्टफोन इस्तेमाल करते हैं, उन्हें इससे खासा फर्क़ पड़ सकता है। वही क्यों, Google Talk, Chat, Gmail, YouTube, Google Plus, Maps और ऐसी ही ढेरों दूसरी सेवाओं पर लॉगिन करने वाले बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी के पास खोने के लिए एक अदद प्राइवेसी है। अएनलाइन संदेश लेने−देने वाले प्रेमियों से लेकर अपनी बीमारियों के बारे में विशेषज्ञों से सलाह मशविरा करने वालों और Google कैलेंडर के जरिए अपने शिड्यूल्स का हिसाब−किताब रखने वालों से लेकर ब्लॉगों में टिप्पणियाँ करने वालों तक के पास चिंतित होने की कई वजहें हैं।आपकी आपत्तिजनक बेनामी टिप्पणी का सोर्स भले ही ब्लॉग चलाने वाले को पता न चले लेकिन याद रखिए, Google को पता है। आपकी बीमारी के बारे में भले ही घरवालों तक को पता न हो, मगर.. Google सब कुछ जानता है। आपको अचानक कितना आर्थिक लाभ हुआ जिसे आपने बड़े जतन से सेपरेट अकाउंट में रखा हुआ है, यह तथ्य भले ही आपके घरवाले न जानें लेकिन बहुत संभव है कि Google उसे जानता हो। शायद आपने अपने किसी ईमेल संदेश में किसी से इसका जिक्र किया हो। आपने किसी बड़े लेनदेन पर टैक्स बचा लिया है या फिर जाने−अनजाने में किसी गलत इंसान से संपर्क कर बैठे हैं या फिर क्रेडिट कार्ड डिफॉल्ट करके किसी दूसरे शहर में आ बैठे हैं तो कम से कम Google से दूर रहिए। अगर आपके पास Android Based PHones है तो फिर टेलीफोन कॉल्स का ब्यौरा भी जोड़ लीजिए। आपने किसे, कब, कितनी देर तक फोन किया, आपके फोन का ब्रांड, टेलीफोन सर्विस वगैरह सबकी जानकारी Google तक पहुंचेगी।आपकी वह जानकारी संयोग या कुयोग से कब किसी गलत हाथ में पड़ जाए, कौन जाने? बहुत से लोग हैं जिनकी दिलचस्पी ऐसी जानकारी में होगी। मार्केटिंग करने वाले, प्रतिद्वंद्वी कारोबारी समूह और यहाँ तक कि अपराधी भी। सरकार को तो संदेहास्पद जानकारी मुहैया कराना ईमेल कंपनियों की की कानूनी बाध्यता है ही। और चलिए ये सूचनाएं अगर किसी और के पास न भी पहुँचें तो क्या Google को आपका जुड़ा निजी डेटा अपने पास सहेजकर रखने का हक है? वह भी बरसों बरस? कौन जाने कुछ साल बाद वह इस जानकारी का किसी और ढंग से इस्तेमाल करने का फैसला कर ले, जिसका आज हमें अनुमान भी नहीं है?अगर आप सोचते हैं कि आप इस अएप्शन को सक्रिय ही नहीं करेंगे तो यह संभव नहीं है।
इस ब्रह्मास्त्र में बचाव का विकल्प यूज़र को नहीं दिया जा रहा। अगर आप Googleकी किसी भी सेवा का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आपको इसे मानना ही होगा। अगर नहीं मानना चाहते तो बस एक ही विकल्प है और वह है Googleसे पूरी तरह अलग हो जाना।
ताज्जुब होता है न? अगर आपकी ईमेल को दफ्तर का कोई साथी, पड़ोसी और यहाँ तक कि आपके घर का कोई सदस्य भी आपकी पीठ पीछे पढ़ रहा हो तो यह साइबर क्राइम माना जाएगा। पुलिस और सीबीआई को भी अगर किसी का टेलीफोन टेप करना है तो उसे केंद्र या राज्य सरकार की इजाजत लेनी पड़ती है। लेकिन यहाँ Googleहमारी निजी जानकारियों पर नजर रखने और उन्हें सहेजने के लिए आज़ाद है। वजह है उसकी प्राइवेसी पॉलिसी, जिसे हम जीमेल और दूसरी Googleसेवाओं के सदस्य बनते समय आम तौर पर बिना पढ़े ही मंजूर कर लेते हैं। कानूनी तौर पर Googleसुरक्षित है लेकिन नैतिक तौर पर?
दुनिया भर में विरोध
अमेरिका में करीब चालीस राज्यों के एटॉर्नी जनरलों ने इस प्राइवेसी पॉलिसी का विरोध किया है। यूरोप के कई देशों ने इस पर विरोध जताया है और प्राइवेसी राइट्स एक्टीविस्ट इस बात पर ऐतराज कर रहे हैं कि Google अपने सभी यूज़र्स को अपने उत्पाद के रूप में दुनिया भर में फैले विज्ञापनदाताओं के सामने पेश कर रहा है। माइक्रोसॉफ्ट ने भी इसकी कड़ी आलोचना की है। दुनिया भर के अखबारों, टेलीविजन चैनलों और सोशियल नेटवर्किंग ठिकानों और ब्लॉगों पर लोगों का गुस्सा फूटा पड़ रहा है।
लेकिन Google टस से मस होने को तैयार नहीं। कुछ महीनों से Gmail. Blogger वगैरह के यूज़र्स को ऐसी विंडोज दिखाई जा रही थीं, जिनमें उनका टेलीफोन नंबर मांगा जा रहा था। बहुतों ने दे भी दिया, हालाँकि उसी पेज पर छोटा सा लिंक इसे अनदेखा करते हुए आगे बढ़ने का भी था जो ज्यादातर लोगों की नजर में नहीं आया। शायद आपको अंदाजा लगा हो कि जानकारी कितनी स्पेसीफिक है।
Google की सफाई है कि नई प्राइवेसी पॉलिसी लाने के दो खास मकसद हैं− पहला, बहुत सारी पॉलिसीज को एक अकेले दस्तावेज में बदलकर सिम्पल बना देना, और दूसरा, यूज़र्स को बेहतर सर्च और सुविधाएँ मुहैया कराना (देखें बॉक्स)। लेकिन आईटी जगत के जानकारों का कहना है कि इसकी कारोबारी वजहें हैं। फेसबुक तेजी से आगे बढ़ रहा है और दुनिया की नंबर एक इंटरनेट कंपनी के रूप में Google का साम्राज्य खतरे में है। उसकी सोशियल नेटवर्किंग साइट Googleप्लस के यूज़र्स की संख्या अभी फेसबुक के आठवें हिस्से तक ही पहुंची है। उधर मुनाफे के मामले में एपल ने कमाल कर दिया है। दिसंबर 2012 में खत्म हुई तिमाही में उसने रिकॉर्ड मुनाफा दर्ज किया है। फेसबुक का भारी−भरकम आईपीओ आने वाला है जो 2012 में आईटी जगत की सबसे बड़ी खबर बनेगा। Twitter भी लगातार खबरों में बना हुआ है। इधर Google की पिछली तिमाही की आय अनुमान से कम रही है।
Google पर दबाव है अपने विज्ञापनों को ज्यादा असरदार और प्रोफिटेबल बनाए, जिसके लिए जरूरी है कि हर यूज़र को उसकी जरूरतों तथा पसंद−नापसंद के लिहाज से विज्ञापन दिखाए जाएँ ताकि वह उन्हें क्लिक करे और Google की आमदनी बढ़े। आपके बारे में जितना ज्यादा डेटा उसके पास होगा, उसकी विज्ञापन प्रणाली उतने ही बेहतर नतीजे देगी। दूसरा दबाव है अपनी सर्विसेज को और बेहतर बनाने का ताकि उससे जुड़ने वाले यूज़र्स की संख्या बढ़ती रहे। अब यह बात अलग है कि Google का ताजा फैसला उल्टा भी पड़ सकता है क्योंकि प्राइवेसी को अहमियत देने वाले बहुत से यूज़र Google से अलग होने का फैसला कर सकते हैं। Microsoft और Facebook मौके का फायदा उठाने में जुट भी गए हैं। वे अपनी−अपनी सेवाओं को ज्यादा सुरक्षित बताते हुए प्रचार अभियान चला रहे हैं।
सवाल उठता है कि यूज़र क्या करे? Google की कई सेवाएँ इतनी अच्छी हैं कि उनसे पूरी तरह हाथ झाड़ लेना संभव नहीं है। लेकिन जिसे आप अपना सबसे भरोसेमंद दोस्त समझते थे वह सरे−बाजार आपकी ही बोली लगाए दे रहा है! आखिर करें तो क्या करें? कहते हैं कि दुनिया में कोई चीज़ मुफ्त नहीं मिलती। सबकी कोई न कोई कीमत है। Google के मामले में वह कीमत है आपकी प्राइवेसी। फैसला आपको ही करना है कि क्या आप यह कीमत अदा करने के लिए तैयार हैं?
सौजन्य :- बालेंदु शर्मा दधिची
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